कर्मक्षेत्र दशम भाव के फल |.
ज्योतिर्विद् अभय पाण्डेय
वाराणसी
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समुदितमृषिवर्यैर्यानवानां प्रयत्नादिह हि दशमभावे सर्वकर्म प्रकामम्।.
गगनगपरिद्दष्टया राशिखेटस्वभावैः सकलमपि विचिन्त्यं सत्त्वयोगात्सुधीभिः।।.
दशम भाव से शुभ अशुभ कर्मों का विचार ऋषियों ने किया हैं, वह शुभ और अशुभ ग्रहों की द्दष्टि तथा राशि, ग्रहों के स्वभावों से बल के अनुसार समझना चाहिये।.
जन्म कुण्डली में दशम भाव की व्यापार और कर्मक्षेत्र में अगत्यता हैं ।.
तनोः सकाशाद्दशमे शशांके वृत्तिर्भवेत्तस्य नरस्य नित्यम् ।.
नानाकलाकौशलवाग्विलासैः सर्वोद्यमैः साहसकर्मभिश्च ।।.
जिसकी कुण्डली में लग्न से दशम भाव में चन्द्रमा हो तो अनेक प्रकार की कुशलता, वाग्विलास, साहस, उधम इत्यादि से परिपूर्ण होता हैं ।.
दिवामणिः कर्मणि चन्द्रतन्वोर्द्रव्याण्यनेकोद्यमवृत्तियोगात्।.
सत्त्वाधिकत्वं च सदा सुरम्यं पुष्टत्वमंगे मनसः प्रसादः ।।.
जिसकी कुण्डली में चन्द्रमा से या लग्न से दशम घर में सूर्य हो तो अनेक उधम से धन का लाभ विशेषबल, सर्वदा सुन्दर शरीर, अंग में पुष्टता, मन में प्रसन्नता रहती हैं ।.
तनोः शंशाकाद्दशमे बलीयान् स्याञ्जीवनं तस्य खगस्य वृत्त्या ।.
बलान्विताद्वर्गपतेस्तु यद्वा वृत्तिर्भवेत्तस्य खगस्य पाके ।।.
लग्न से या चन्द्रमा से दशम स्थान में जो बलवान ग्रह हो उसी ग्रह के अनुसार जीविका होती हैं अथवा षड्वर्गों में पूर्णबली ग्रहों के दशान्तर्दशा में जीविका होती हैं ।.
लग्नेन्दुतः कर्मणि चेन्महीजः स्यात्साहसाच्चौर्यनिषादवृत्तिः ।.
नूनं नराणां विषयातिशक्तिर्दूरे निवासः सहसा कदाचित् ।।.
लग्न से या चन्द्रमा से कर्मभाव में मंगल हो तो वह हठ से चोरी (चतुराई और कपट) तथा हिंसा करनेवाला होता है, और विषयों में आसक्त रहता हैं, कभी हठात् कहीं दूर देश में रहनेवाला होता हैं ।.
लग्नेन्दुभ्यां कर्मगो रौहिणेयः कुर्यात् द्रव्यं नायकत्वं बहूनाम् ।.
शिल्पेऽभ्यासः साहसं सर्वकार्ये विद्वदवृत्त्या जीवनं मानवानाम्।।.
जिसकी कुण्डली में लग्न से या चन्द्रमा से कर्मस्थान में बुध हो तो वह लोगों का नायक, शिल्पकला जानने वाला, साहसी, धनी और पण्डितों की वृत्ति से जीवन चलानेवाला होता हैं ।.
विलग्नतः शीतमयूखतो वाऽऽशाख्ये मघोनः सचिवो यदि स्यात् ।.
नानाधनाभ्यागमनानि पुंसां विचित्रवृत्त्या नृपगौरवं च ।।.
जिसकी कुण्डली में लग्न से या चन्द्रमा से दसवें घर में बृहस्पति हो तो उसको अनेक प्रकार से धन का लाभ, ह्रदय की प्रसन्नता और राजा (सरकार) के आश्रय से प्रतिष्ठा बढ़ती हैं ।.
होरायाश्च निशाकरादभृगुसुतो मेषूरणे संस्थितो
नानाशास्त्रकलाकलामविलसतवृत्त्यादिशेज्जीवनम् ।.
दाने साधुजने यथा विनयतां कामं धनाभ्यागमं
नानामानवनायकादिविरलं विस्तीर्णशीलं यशः ।।.
लग्न से या चन्द्रमा से दशवें स्थान में शुक्र हो तो अनेक तरह के शास्त्रकलाओं के आधार से जीवन बिताने वाला होता हैं, दानमें, साधुओं की सेवा में मन लगाता हैं, विशेष धन का लाभ होता हैं, जनता का नायक एवं प्रख्यात यशवाला होता हैं ।.
फिल्म और छोटे पर्दे के सफल कलाकारों में ये योग होता हैं ।।.
होरायाश्च सुधाकराद्रविसुतः शैलूषमध्यस्थितो
वृतिं हीनतरां नरस्य कुरुते कार्श्य शरीरे सदा ।.
खेदं वादभयं च धान्यधनयोर्हानिं स्वमुच्चैर्मन-
श्चित्तोद्वेगसमुद्भवेन चपलं शीलं च नो निर्मलम् ।।.
जिसकी जन्म कुण्डली में लग्न से या चन्द्रमा से कर्म (१०) स्थान में शनि हो तो वह निम्न कर्मों से आजीविका करनेवाला होता हैं, शरीर में दुर्बलता, खेद करनेवाला, कलह से भय धन धान्य की हानी, चिन्ता के उद्देश से चञ्चलता स्वभाव भी अच्छा नहीं होता हैं ।.
ज्ञानीजन ग्रह के उच्च और निच्च का विचार करें, मित्रक्षेत्र और शत्रुक्षेत्र का भी विचार करें और फलकथन करें ।।.
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