लग्न पर ग्रहों के प्रभाव का सामान्य फल जाने ज्योतिर्विद् अभय पाण्डेय से
लग्न पर ग्रहों के प्रभाव और उपाए –
कुंडली का लग्न, लग्नेश जातक स्वयं होता है |. लग्न लग्नेश पर जिस भी श्रेणी के ग्रहो, जिस भी भाव पतियों का प्रभाव होगा, जातक का रूप रंग, स्वभाव, व्यक्तित्व और शरीर और जीवन की स्थिति उन्ही ग्रहो, भावपतियो से प्रभावित होती है |. लग्न का लग्न में ही बैठना या लग्नेश का लग्न को देखना परम शुभ होता है, ऐसी स्थिति में लग्न बलवान हो जाता है जो अच्छे को अच्छा स्वास्थ्य और व्यक्तित्व दोनों में सक्षम होता है |. लग्न पर शुभ ग्रहो गुरु, शुक्र, बुध की दृष्टि उदार और श्रेष्ठ स्वास्थ्, अच्छी शारीरिक स्थिति और उत्तम व्यक्तित्व प्रदान करती है |.
लग्न पूरी कुंडली की नींव होता है |. लग्न, लग्नेश पर अधिक से अधिक पाप ग्रहों, शनि राहु केतु का दूषित प्रभाव, जातक के स्वास्थ्य और जीवन में संघर्ष की मात्रा में वृद्धि करता है |. व्यक्तित्व में रुखापन देता है |. लग्न लग्नेश पर पाप ग्रहो के साथ साथ षष्ठेश, अष्टमेश का प्रभाव होने से जातक जादू टोना, ऊपरी बाधा आदि का भी शिकार हो जाता है |. सदैव अधिकतर ऐसी स्थिति में अपने ख़राब स्वास्थ्य से ऐसा जातक परेशान रहता है |. छठा भाव बाधाओं, बंधन का है और आठवाँ भाव मृत्यु, शमशान, भयंकर कष्टों का है |.
छठे भाव के स्वामी को षष्ठेश और आठवें भाव के स्वामी को अष्टमेश कहते है |. जब लग्न लग्नेश पाप ग्रहो सहित षष्ठेश,अष्टमेश के प्रभाव में आ जाता है तब जातक ऊपरी बाधाओं, जादू टोना आदि का शिकार होता है |. लग्न लग्नेश पर बृहस्पति का शुभ प्रभाव होने से जातक इस प्रकार की बाधाओं और दिक्कतों से आसानी से ग्रसित नही होता यदि ग्रह दशा अनुकूल न होने से इस प्रकार की बाधाये जातक को प्रभावित भी करती है, तब तब लग्न लग्नेश पर बृहस्पति का शुभ प्रभाव जातक को इन समस्त दिक्कतों से बचा लेता है |.
लग्न का 6, 8 भाव में बैठ जाना भी इसी कारण से शुभ नही माना जाता क्योंकि 6, 8 में लग्नेश बैठेगा तब जातक रोग, बाधित जीवन, कष्ट से ग्रसित रहता है |. लग्नेश का केंद्र त्रिकोण में बैठना या केन्द्रेश त्रिकोणेश से सम्बन्ध बनाना अति शुभ रहता है |. लग्नेश किसी शुभ भावेश के साथ होता है तो उस भावेश और भाव के शुभ फलों की वृद्धि करता है |.
लग्न पर शुभ प्रभाव होने से स्थिति अनुकूल रहती है,इसी कारण लग्न, लग्नेश को कुंडली की नींव कहा जाता है |. लग्न लग्नेश बली और शुभ प्रभाव में रहने से कुंडली का संतुलन ठीक बना रहता है वरना अन्य ग्रहो के शुभ फलों को भी जातक ठीक से प्राप्त नही कर सकता |. क्योंकि जब लग्न, लग्नेश मतलब जातक खुद ठीक स्थिति में नही होगा तब अन्य ग्रहो के अनुकूल फलो का कोई महत्व जातक के लिए नही रहता ।
ज्योतिर्विद् अभय पाण्डेय
भगवती ज्योतिष परामर्श केन्द्र
वाराणसी
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